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Most Popular Hindi Story|| शिवकृपा : विज्ञान कविता सहित्यांग ही है|| Hindi Stories

शिवकृपा :

        विज्ञान कविता सहित्यांग ही है 

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विज्ञान कविता अब तक एक तनिक भ्रमित अवधारणा रही , परन्तु अब प्रज्ञान पुरुष ( जिन्हें 'सात्विक पुरुष' कहना मुझे अधिक अच्छा लगता है ) पंडित सुरेश नीरव जी जिस गरिमा से ' विज्ञान कविता' का पोषण- पल्लवन कर रहे हैं , वह अद्वितीय है ! 
     छोटी दीपावली को रुड़की के सुमधुर गीतकार श्री सुरेन्द्र कुमार सैनी ने मुझे सात्विक पुरुष पंडित सुरेश नीरव द्वारा सम्पादित 13 रचनाकारों का काव्य- संग्रह 'विज्ञान कविताएं' दिया । विमर्श ने त्योहार को गौण किया और मैं जुटा विज्ञान कविता की मीमांसा में। बड़ी दीपावली को अपने यूट्यूब चैनल के लिए समीक्षा का एक वीडियो तैयार किया ,जिसे लिंक https://youtu.be/Xh_zIdq-cUc
  पर आप सभी देख सकते हैं। संग्रह की एक समीक्षा पंडित जी को ईमेल की । 
     कल यह विमर्श-लेख लिखा ,जिसे गुरुग्राम से प्रकाशित समाचारपत्र 'दैनिक हरियाणा प्रदीप' ने बहुत सुंदर रूप से स्थान दिया। समाचारपत्र के विद्वान् एवं सौम्य सम्पादक श्री महेश प्रसाद बंसल का आभार !
     टंकित रूप सहित आप सभी के लिए सादर अवलोकनार्थ -

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विज्ञान कविता , इस शब्द- युग्म या कविता के संग विज्ञान के विशेषण को स्वीकार ना करने में जड़ता एक कारण हो सकती है ; ईर्ष्या और असमर्थता भी , परन्तु मुझे लगता है कि विज्ञान कविता साहित्य का एक अद्वितीय एवं अनुपम अध्याय है !
                   - लेख से

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विमर्श :


विज्ञान कविता : साहित्य का अद्वितीय अध्याय


          ■ डॉ . सम्राट् सुधा


 प्रस्तुत लेख किसी संग्रह विशेष की समीक्षा ना होकर विज्ञान कविताओं पर एक विमर्श है ! विज्ञान कविता , कविता के लिए विज्ञान विशेषण प्रायः ग्राह्य नहीं है ! विज्ञान भी इस अग्राह्यता का अपवाद नहीं !
        विमर्श प्रारम्भ हुआ , जब मुझे पंडित सुरेश नीरव द्वारा सम्पादित काव्य - संग्रह , विज्ञान कविताएं , मिला । विज्ञान का कविता से और इसी प्रकार कविता का विज्ञान से भला क्या सम्बन्ध ? प्रगतिवादी काव्य में विज्ञान की बातें पहले से हैं ,तो जिन कविताओं को अब विज्ञान कविताएं कहा जा रहा है , उन्हें प्रगतिवादी काव्य में ही सम्मिलित क्यों ना किया जाए ? ऊपर्युक्त काव्य-संग्रह में देश के कुल तेरह रचनाकारों की बावन विज्ञान कविताएं हैं और पंडित सुरेश नीरव का विज्ञान कविताएं रचे जाने के प्रति एक आह्वान- गीत भी है। बात विज्ञान कविता ,इस शब्द युग्म या कहें कि कविता के संग विज्ञान विशेषण की है। पंडित सुरेश नीरव जिन कविताओं को विज्ञान कविताएं कह रहे हैं , अनेक साहित्यिक- पंडितों को उस पर तर्कहीन आपत्ति है।
       भारतीय और पाश्चात्य , दोनों ही काव्य-शास्त्रों में काव्य की अनेक परिभाषाएं हैं। विज्ञान कविता के परिप्रेक्ष्य में भारतीय काव्य-शास्त्री जगन्नाथ की परिभाषा देखते हैं , वे लिखते हैं -

     रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्द काव्यम् !

     अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्द को काव्य कहते हैं।
        अब बात रमणीय या सुंदर की ही। क्या सुंदर एकाकी या एकांगी शब्द है ? हमें इस पर भारतीय दर्शन के सूत्र - सत्यम् शिवम् सुंदरम् - के परिप्रेक्ष्य में विचार करना होगा । इसे यूँ लेते हैं- 
 

       सत्यम् ~ शिवम् ~ सुंदरम्


     अब सत्य क्या है ? वह जो शिव ,अर्थात् कल्याणकारी हो ! जो कल्याणकारी है , वह ही सुन्दर भी है ! इसी सूत्र को दाएं से बाएं देखें ! सुन्दर क्या है ? वह , जो कल्याणकारी हो ! जो कल्याणकारी है वह ही सत्य है ! स्पष्ट है कि मूल कल्याण है ! सो , जगन्नाथ की रमणीयता के संग सत्य और सुंदर दोनों सन्निहित हैं। 
    अब बात पाश्चात्य काव्य-शास्त्र की। सेम्युअल टेलर कॉलरिज की एक परिभाषा है -

   Poetry is the antithesis of science , having for its immediate object pleasure , not truth.

      अर्थात् , काव्य विज्ञान का विलोम है , जिसका उद्देश्य आनन्द है , सत्य नहीं !

       कॉलरिज जब काव्य का उद्देश्य मात्र आनन्द बताते हैं , तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आनन्दानुभूति या प्रकारांतर से रमणीकता तभी सम्भव है , जब वह सत्य एवं शिव भी हो ! कोई भी व्यक्ति मात्र आनन्द के लिए रसगुल्ला या अपना कोई भी प्रिय खाद्य तब तक ग्रहण नहीं करेगा , जब तक उसके सत्य और कल्याणकारी होने का आश्वास उसे ना हो , यही बात काव्यानुभूति के संदर्भ में भी है ।
        सो ,विज्ञान का काव्य से साथ जुड़ा होना वरेण्य है । एक बात प्रगतिवादी काव्य में वैज्ञानिक उपकरणों के वर्णन की है, तो यह स्मरण रखना है कि प्रगतिवादी या अन्यत्र भी , वैज्ञानिक उपकरण मात्र बिंबों के रूप में प्रयोग किये गये हैं। इधर विज्ञान कविताओं में वे विज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु हैं। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि प्रगतिवादी काव्य में विज्ञान ,काव्य में एक अवलम्बन है , परन्तु विज्ञान कविताओं में वह मूल है और काव्य उसकी एक विधा या शैली है। इन कविताओं में अनेक उदाहरण ऐसे हैं, जिनमें वैज्ञानिक शब्दों से मनोभाव अभिव्यक्त किये गये हैं। कवयित्री मधु मिश्रा की एक कविता है- मेरे मैं का क्वथनांक बिन्दू , इसका एक उदाहरण देखिए -

       मैं एक पदार्थ हूँ
       जिसे समय की टेस्ट ट्यूब में डालकर
    और समस्याओं के स्प्रिट लैम्प की लौ पर रखकर
      रोज़ उबाला जाता है
        ***
       वे मेरा क्वथनांक बिंदू तलाश रहे हैं...

      इसी प्रकार रामवरण ओझा की द्वितीय पंक्ति के शीर्षक वाली कविता के ये अंश देखिए -

    आकर्षण से उत्प्लावित हो, उत्पन्नित रागायन
    दिन हो गये भौतिकी अपने , रातें हुईं रसायन !

      विज्ञान कविताओं का प्रथम और एकमात्र उद्देश्य विज्ञान के तथ्यों को काव्यात्मक रूप से उपस्थित करना है। यह दुष्कर , परन्तु सम्भव है , जो मुझे मिले काव्य- संग्रह विज्ञान कविताएं से भी स्पष्ट है। काव्य-संग्रह विज्ञान कविताएं में पंडित सुरेश नीरव की एक कविता - जो फ़लसफा था ध्यान में -से का यह अंश देखिए-

       जो फ़लसफा था ध्यान में 
        वो ढाल दिया विज्ञान में।
            ***
         विज्ञान तुम्हें बताता है 
        कि तुम अकेले साँस नहीं ले रहे
         वो जो तुम्हारे सामने लगा पेड़ है
          वह भी
          तुम्हारे साथ साँस ले रहा है
         और यह भी जान लो
         कि जब तक वह साँस ले रहा है
         तभी तक तुम साँस ले रहे हो ...

     यह पूरी कविता का एक अंश है। अब इसमें देखें तो प्रथम विज्ञान है ; वनस्पति शास्त्र भी कह लें , द्वितीय काव्य है एवं तृतीय अध्यात्म भी है ! ये सब एक-दूजे में समाविष्ट हैं , पृथक् नहीं ! प्रभाव की दृष्टि से यह एक विशुद्ध विज्ञान कविता है ! इस उन्नत स्तर पर लिखी गयीं कविताओं को साहित्य को उतनी ही उदात्तता से स्वीकार करना चाहिए !
        विज्ञान कविता , इस शब्द- युग्म या कविता के संग विज्ञान के विशेषण को स्वीकार ना करने में जड़ता एक कारण हो सकती है ; ईर्ष्या और असमर्थता भी , परन्तु मुझे लगता है कि विज्ञान कविता साहित्य का एक अद्वितीय एवं अनुपम अध्याय है ! अद्वितीयता को दृष्टिगत रख यदि हम स्वयं विज्ञान कविताओं का प्रणयन करते हैं और इनके शोध को बढ़ावा देते हैं , तो यह साहित्य की सच्ची सेवा होगी ! पंडित सुरेश नीरव के आह्वान गीत के इस अंश से अपनी बात समाप्त करता हूँ -

    नये नये संधान की नये नये प्रतिमान के
    नयी सोच के संवाहक तुम, गीत लिखो विज्ञान के।
          ***
     हैं हस्ताक्षर नील गगन पर ,धरती के इंसान के
     विज्ञानी वरदान से निकलें , मूलमंत्र सब त्राण के
     रक्तशिरा से ढूँढ़ निकालो, हार्मोन मुसकान के
    नयी सोच के संवाहक तुम, गीत लिखो विज्ञान के।

                     -💐-