पुस्तकांश :
शिक्षक : व्यवसायी या सेवक
आज सुबह 6:55 बजे यू.एस. से रूबी जिंदल बिटिया ( पूर्व स्टूडेंट ) का फोन आया। वर्ष 2002 में वे दसवीं में थीं , अब बी. एससी. , एम.बी.ए. , एसबीआई का जॉब कर यू. एस. में पति के साथ हैं ,दो नन्हीं देवियां हैं उनके यहाँ ! फैमली का जब पूछा था , तो बताकर बहुत सम्मान से बोलीं -" अब देखिए सर , आपने तो पूछ लिया, हम तो आपसे ये पूछ भी नहीं सकते !" यह बच्ची के उस संस्कार विशेष की बात थी , जिसमें बड़ों से अनौपचारिक नहीं हुआ जाता । यह बात अपने डबल ओ.सी. को बताता हूँ बाद में , तो प्रत्येक बात को बहुत सूक्ष्मता से विचारने वाले , वे हंसते हैं और कहते हैं -" कितनी संस्कारी बच्ची है यह !" गर्व होता है कि इतने परिपक्व बच्चों को पढ़ाने का अवसर शिवबाबा ने दिया ! बातचीत के क्रम में वे कहती हैं -" हम लोग लिटरेचर को ये सोचते थे कि क्यों है कोर्स में , परन्तु आपने हमें उसकी इम्पोर्टेंस समझायी !" जो सबसे बड़ी बात उन्होंने कही -" सर, आप और कपिल सर जैसे टीचर , मतलब ,जिन्हें हम टीचर कह सकते थे ..." पुनः अर्द्धांश देखें -" जिन्हें टीचर हम कह सकते थे ," यह है वह मूल बिंदू ,जिस पर प्रत्येक टीचर को हमेशा दृष्टि रखनी चाहिए कि उसे टीचर कहा जा सकता है क्या , इससे पहले कि स्टूडेंट उसका निर्धारण करें कि वह टीचर है भी या एक बड़ा ' चीटर ' है ! जिन कपिल सर का ज़िक़्र ऊपर बच्ची ने किया , वे हैं श्री कपिल चौधरी , जो आजकल नियमित रूप से इन संस्मरणों को पढ़ रहे हैं। श्री कपिल चौधरी बोर्डिंग के अगले प्रिंसिपल बनें , यह मेरी उन दिनों की कामना थी । ऐसी ही कामना श्री हरविंदर सिंह को लेकर मेरी रही थी , परन्तु उनके बारे में भी मैं यह भाँप चुका था कि वे अधिक दिन स्कूल में रुकने वाले नहीं हैं। आंतरिक शैक्षिक मूल्य टूट रहे थे , सच तो यह है कि विकृत हो रहे थे। कोई भी वृक्ष तनों से नहीं सूखता या ढहता , गड़बड़ी जड़ में ही होती है ! कल के योग्यों की सच्चाई समय के साथ कुछ और नज़र आने लगी थी । इस समय तुलसी बाबा ( तुलसीदास जी) का ही सहारा हैं -
" संग ते जती कुमन्त्र ते राजा ।
मान ते ज्ञान पान ते लाजा ।।
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी ।
नासहिं बेगि नीति अस सुनी ।।"
( श्रीरामचरितमानस )
एक डे- स्कॉलर छात्रा के देहावसान की दुःखद सूचना मिली , तो तय हुआ कि कंडोलेन्स के बाद उसके सब्जेक्ट्स टीचर्स उसके घर होकर आयेंगे । हम टीचर्स उसके घर गये , उस बच्ची के पार्थिव शरीर को श्रद्धाजंलि दी। लौटे तो मेन गेट की आउटिंग के अनुसार एक शिक्षिका कम थी। हमने सोचा बीच में हमें बिना बताए किसी आवश्यक कार्य से कहीं रुकी होंगी।नहा- धोकर चाय के लिए मेस गये , तब तक भी वह नहीं आयी थी । मेस से सीढियां उतर रहे थे , तो वह ऊपर की ओर आ रही थी, जहाँ थी वहीं से हमें हथेलियां दिखाती हुई बोली -" ये देखो , कितनी सुंदर मेहंदी लगवाकर आयी हूँ ! आज पार्लर भी हो आयी ! " उतरने वालों में से किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। यह क्रूरता , विशेषतः किसी शिक्षिका की अधम क्रूरता का दुःखद उदाहरण है । आठ वर्षों तक यह दुर्घटना , मनुष्य के विकृत मनोविज्ञान के रूप में मेरे मस्तिष्क में रही। वर्ष 2010 में इस घटना को ज्यों का त्यों मैंने एक लघुकथा के रूप में लिखा , जो देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में छपी।
हम सभी के जीवन का अंतिम सच अब एक ही शेष है - हमारी मृत्यु ! जीवन के दो ही सच होते हैं - जन्म व मृत्यु ! इन दोनों के होने में ' शायद ' का कोई स्थान नहीं ! आज जो मित्र है , वह शायद कल मित्र ना रहे या समग्रतः आज जो ,जैसा भी है , कल वो वैसा ना रहे , परन्तु हमारा जन्म हुआ ही था , यह निर्विवाद सत्य है और हमारी मृत्यु होगी ही , यह अटल है ! अब हम यह सोचें कि हमें कैसा जीवन जीना है , दूसरों को सुख देकर या दुःख देकर , यह सोचते हुए ,ध्यान यह भी रखना है कि जो भी हम दूसरे को देते हैं , वह एक ना एक दिन हमारे पास लौटकर आता अवश्य है।
टीचिंग एक व्यवसाय नहीं , सेवा है ! स्टूडेंट्स के अपने-अपने पारिवारिक संस्कार होते हैं , परन्तु शैक्षिक संस्कारों के लिए वे शिक्षकों के हाथों में होते हैं , जिन पर अटूट विश्वास कर अभिभावक उन्हें हमारे पास या हमारे शिक्षालयों में भेजते हैं। क्या सभी शिक्षक अभिभावकों की आस्था को बनाए रख पाते हैं ? क्या सभी शिक्षालय श्रेष्ठ शिक्षकों को यथोचित वातावरण उपलब्ध करा पाते हैं ? शिक्षक से तनिक भी कम, शिक्षक नहीं है , शिक्षक बस एक शिक्षक ही है ! Maria Montessori लिख गयीं हैं - The greatest sign of success for a teacher is to be able to say -" The children are now working as if I did not exist ."
- पुस्तक ' पीले पन्नों से,' अध्याय : तीन , भाग-19 से